एक-एक कर सब अपने
अब सपने हो गए
कुछ सपने हैं
उसमें से कुछ ही अपने हैं
जाने पहचाने रिश्ते
अनजाने हो गए
देखते-देखते
क्या से क्या हो गए
कुछ पल में बदल गए
कुछ तो बस
यूं ही बदल गए
हम देखते रह गए कि
कब हम पराए हो गए
कोई पूछे नहीं हाल-चाल
रिश्तों में खटास
ऐसे ही गुज़रे
जाने कितने साल-दर-साल
सोचता हूं रूठ जाऊं
बस बहुत हो गया
ऐसे जीते-जीते, पर
मनाने वाला कौन है
जाने को चला जाऊं
सब छोड़ कर, पर
जाने के बाद
रोने वाला कौन है
चार दिन में भूल जाते हैं लोग
मतलब निकल जाने पर पूछते
भाईसाहब आप कौन हैं ?
जी रहा हूँ मैं, पर
किसलिए ?
किसके लिए ?
Beautiful lines indeed. 🙏🙏🙏
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Thank you
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My pleasure.🙏🙏 🙏🙏
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Thank you for the recommendation
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जीवन का यथार्थ ।
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Yes, indeed.
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