परछाई बूंदों की होती, सागर की नहीं
अंधेर दीपक तले होता, सूर्य के नहीं
नज़र है पास सबके, क्यों नज़रिया नहीं ?
ज़िन्दगी है पास सबके, क्यों जीने का रवैया नहीं ?
धुंध छाए आकाश में, बरसता बादल है धुआं नहीं
विकल्प सबके पास है, चुनने का हक़ या हुनर नहीं
जय होती दूसरों की, क्यों पहले खुद की नहीं ?
सवाल करे जहां से, क्यों पहले खुद से नहीं ?
सच्चाई की राह इंसान भटकता है, राह खुद नहीं
समझ छोटी-छोटी बातें, कर बड़ी-बड़ी बातें नहीं
धुंधला हो रहा जहां, कहीं धूल तेरे ऐनक में तो नहीं ?
ढूंढ़ता जीवन ग्रहों पर, क्यों शुरुआत अपने घर से नहीं ?
वाक़ई खूबसूरत कविता है।👌👌
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शब्द और उनकी गहराई बेहद प्रेरणादायक है।💯
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Thank you
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Bahut khoob👌
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Thanks
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Your Welcome☺️
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