अपने सपने हो गए

Navneet Kumar's avatarThe Horizon

एक-एक कर सब अपने
अब सपने हो गए
कुछ सपने हैं
उसमें से कुछ ही अपने हैं
जाने पहचाने रिश्ते
अनजाने हो गए
देखते-देखते
क्या से क्या हो गए
कुछ पल में बदल गए
कुछ तो बस
यूं ही बदल गए
हम देखते रह गए कि
कब हम पराए हो गए
कोई पूछे नहीं हाल-चाल
रिश्तों में खटास
ऐसे ही गुज़रे
जाने कितने साल-दर-साल
सोचता हूं रूठ जाऊं
बस बहुत हो गया
ऐसे जीते-जीते, पर
मनाने वाला कौन है
जाने को चला जाऊं
सब छोड़ कर, पर
जाने के बाद
रोने वाला कौन है
चार दिन में भूल जाते हैं लोग
मतलब निकल जाने पर पूछते
भाईसाहब आप कौन हैं ?
जी रहा हूँ मैं, पर
किसलिए ?
किसके लिए ?

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Published by Debasis Nayak

A natural leader who experiments a lot and cares for all ! The title of my blog is not about my blood group. It's a message to all my readers to think positive and write on my blog posts openheartedly what they think!!

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