GITA WISDOM # 58 Chapter 3 verse 11 देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ॥ तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे ॥11॥ Chief executives shallContinue reading “WIN-WIN APPROACH”
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THE TORTOISE SYNDROME
GITA WISDOM # 57 Chapter 2 Verse 58 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥ और कछुवा सब ओर से अपने अंगों को जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है (ऐसा समझना चाहिए) ॥58॥ The leaderContinue reading “THE TORTOISE SYNDROME”
CONFLICTING GUIDANCE
GITA WISDOM # 56 Chapter 3 Verse 2 व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्॥ आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं। इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ ॥2॥ The council or guidance provided must be simple; itContinue reading “CONFLICTING GUIDANCE”
EDUCATE, DO NOT CONFUSE
GITA WISDOM # 56 Chapter 3 Verse 29 प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्॥ प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जानने वाला ज्ञानी विचलित न करे॥29॥ When the followers err in understanding the subtle differences between variousContinue reading “EDUCATE, DO NOT CONFUSE”
LEADING FROM THE FRONT
GITA WISDOM # 55 Chapter 3 Verse 26 न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङि्गनाम्।जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्॥ परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसेContinue reading “LEADING FROM THE FRONT”
FOLLOWERSHIP
GITA WISDOM # 54 Chapter 3 Verse 23 यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥ क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित् मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूँ तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ॥23॥ Men tend to follow the path ofContinue reading “FOLLOWERSHIP”
LEADERSHIP
GITA WISDOM # 53 Bhagavad Gita: Chapter 3 Verse 21 यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है (यहाँ क्रिया में एकवचन है, परन्तु ‘लोक’ शब्द समुदायवाचकContinue reading “LEADERSHIP”
BENCHMARKING LEADERSHIP
GITA WISDOM #52 Bhagavad Gita: Chapter 3 Verse 20 कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि॥ जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्मद्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे, इसलिए तथा लोकसंग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने के ही योग्य है अर्थात तुझे कर्म करना ही उचित है॥20॥ It is essential for a chief executiveContinue reading “BENCHMARKING LEADERSHIP”
FALSE PRETENCES OF SPIRITUALITY
GITA WISDOM # 51 दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्त्यजेत्।स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्॥ जो कुछ कर्म है वह सब दुःखरूप ही है- ऐसा समझकर यदि कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मों का त्याग कर दे, तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्याग के फल को किसी प्रकार भी नहीं पाता॥8॥ Actions involve efforts. IfContinue reading “FALSE PRETENCES OF SPIRITUALITY”
NEGATIVE CHARITY
GITA WISDOM # 50 अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते।असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्॥ जो दान बिना सत्कार के अथवा तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश-काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाता है, वह दान तामस कहा गया है॥22॥ The foolish mortals resort to methods of charity which are directed to the wrong recipients at the wrong time and place and are givenContinue reading “NEGATIVE CHARITY”
AGGRESSIVE CHARITY
GITA WISDOM #49 यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्॥ किन्तु जो दान क्लेशपूर्वक (जैसे प्रायः वर्तमान समय के चन्दे-चिट्ठे आदि में धन दिया जाता है।) तथा प्रत्युपकार के प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में (अर्थात् मान बड़ाई, प्रतिष्ठा और स्वर्गादि की प्राप्ति के लिए अथवा रोगादि की निवृत्ति के लिए।)Continue reading “AGGRESSIVE CHARITY”
THE RIGHT WAY OF CHARITY
GITA WISDOM # 48 दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्॥ दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल (जिस देश-काल में जिस वस्तु का अभाव हो, वही देश-काल, उस वस्तु द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है।) और पात्र के (भूखे, अनाथ,Continue reading “THE RIGHT WAY OF CHARITY”
NEGATIVE SPIRITUALITY
GITA WISDOM # 47 मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्॥ जो तप मूढ़तापूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे का अनिष्ट करने के लिए किया जाता है- वह तप तामस कहा गया है ॥19॥ Obstinate spirituality that hurts body and mind as well as causes harm to others isContinue reading “NEGATIVE SPIRITUALITY”
RITUALS OF THE LAZY FOLKS
GITA WISDOM # 45 विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्।श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते॥ शास्त्रविधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किए जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं ॥13॥ Men possessed of lazy approaches to life carry out religious practices not sanctified by the scriptures with indifference and bereftContinue reading “RITUALS OF THE LAZY FOLKS”
RITUALS OF THE ARROGANT FOLKS
GITA WISDOM # 44 अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत्।इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम्॥ परन्तु हे अर्जुन! केवल दम्भाचरण के लिए अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान ॥12॥ The arrogant and greedy folks perform rituals to impress others and to get earthlyContinue reading “RITUALS OF THE ARROGANT FOLKS”