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Tag Archives: wisdom
NOBLE THOUGHTS # 77
Have a nice day! 💐
LEARNING TO FORGIVE
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Forgiveness is giving up the need to punish someone or yourself for an offense. We let go of judging the person who caused the hurt. Instead of revenge and resentment we choose understanding and kindness. In forgiveness, we don’t forget that the offense occurred, nor do we excuse…
WORDS OF WISDOM # 09
Have a joyful day!
THOUGHT FOR TODAY ~ 30
Have a nice day!
WORDS OF WISDOM # 08
Have a great weekend!
LEARNING TO FORGIVE
Originally posted on Find Your Middle Ground:
Forgiveness is giving up the desire to punish someone or yourself for an offense. We let go of judging the person who caused the hurt. Instead of revenge and resentment we choose understanding and kindness. In forgiveness, we don’t forget that the offense occurred nor do we excuse…
NOBLE THOUGHTS # 62
Have a nice day!
THE STEADFAST MIND
GITA WISDOM # 73Chapter 13 Verse 9 असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु।नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु॥ पुत्र, स्त्री, घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव, ममता का न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना ॥9॥ Withdrawing from desires of possessions, and family bondages a manager, with steadfast mind towards the worldlyContinue reading “THE STEADFAST MIND”
THE RESULT OF UNBALANCED MIND
GITA WISDOM # 72Chapter 2 Verse 66-67 नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्॥ ~ 2.66 न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती और उस अयुक्त मनुष्य के अन्तःकरण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती और शान्तिरहित मनुष्य को सुख कैसेContinue reading “THE RESULT OF UNBALANCED MIND”
WORDS OF WISDOM # 05
Have a nice day!
THE PATH TO A STEADY MIND
GITA WISDOM # 71Chapter 2 Verse 65 प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते॥ श्लोक 65 – अध्याय 2 – गीता का सार अन्तःकरण की प्रसन्नता होने पर इसके सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्नचित्त वाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भलीभाँतिContinue reading “THE PATH TO A STEADY MIND”
EXECUTIVE STRESS
GITA WISDOM # 70Chapter 3 Verse 19 तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः॥ श्लोक 19 – अध्याय 3 – कर्मयोग इसलिए तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्यकर्म को भलीभाँति करता रह क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है ॥19॥ An executive who dischargesContinue reading “EXECUTIVE STRESS”
INNER SATISFACTION
GITA WISDOM # 69Chapter 3 Verse 17 ( ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता ) यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥ परन्तु जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो, उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है ॥17॥ AContinue reading “INNER SATISFACTION”
WHEN LAZINESS SURFACES
GITA WISDOM # 68Chapter 14 Verse 13 अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च।तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन॥ हे अर्जुन! तमोगुण के बढ़ने पर अन्तःकरण और इंन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद अर्थात व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि अन्तःकरण की मोहिनी वृत्तियाँ – ये सब ही उत्पन्न होते हैं ॥13॥ Human beings suffer from various melodies whenContinue reading “WHEN LAZINESS SURFACES”
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